पटना – ललन सिंह ने जनता दल यूनाइटेडकी कार्यकारिणी का गठन किया, जिसमें एक नेता की अनुपस्थिति ने सभी को चौंका दिया. हालांकि यह अनुपस्थिति अप्रत्याशित नहीं थी. हम बात कर रहे हैं राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह की. नए संसद भवन के उद्घाटन के मौके पर पार्टी लाइन से अलग जाते हुए जिस तरह से हरिवंश ने अपनी सहभागिता दिखाई, उससे पार्टी में उनके खिलाफ नाराजगी बढ़ी थी. यह नाराजगी तब और जगजाहिर हो गई, जब दिल्ली सेवा बिल पर हरिवंश वोटिंग करने के बदले सभापति के आसन पर विराजमान नजर आए. हरिवंश ने ऐसा कर पार्टी को अपना रुख जता दिया तो अगली बारी पार्टी की थी. फिर क्या था, ललन सिंह ने भी कार्यकारिणी बनाई तो हरिवंश जैसे वरिष्ठ नेता गायब दिखे. हरिवंश अकेले नेता नहीं हैं, जिनको नीतीश कुमार ने पहले आगे बढ़ाया पर अपनी महत्वाकांक्षा की कश्ती के सवार नहीं बना पाए. अब तक नीतीश कुमार से नजदीकी और दूरी बना चुके नेताओं की फेहरिस्त हरिवंश को लेकर 11 तक हो चली है. 2005 के बाद नीतीश कुमार ने 11 नेताओं को खास बनाकर राज्यसभा भेजा पर समय के साथ नीतीश का साथ छोड़ सभी नेता चलते बने. आखिर क्यों?
कई बार नीतीश कुमार भी बोल चुके हैं कि जिनको भी उन्होंने राज्यसभा भेजा, सब लोग उन्हें छोड़कर चले गए. हालांकि उन्होंने कभी किसी का नाम नहीं लिया. नीतीश कुमार ने सबसे पहले अपने गुरु जॉर्ज फर्नांडीज को राज्यसभा भेजा था, लेकिन अंतिम दिनों में जॉर्ज फर्नांडीज का रिश्ता नीतीश कुमार से बहुत खराब दौर में पहुंच गया था. कार्यकाल समाप्त होने के बाद तो फर्नांडीज कभी भी जेडीयू के संपर्क में भी नहीं रहे.
जॉर्ज फर्नांडीज को अध्यक्ष पद से हटाकर नीतीश कुमार ने शरद यादव को जेडीयू की कमान सौंपी और उन्हें अध्यक्ष बना दिया. लंबे समय तक दोनों नेताओं ने मिलकर काम किया पर समय के साथ दोनों के बीच दूरियां भी बढ़ती चली गई. बाद में दोनों की राहें भी जुदा हो गईं. हुआ यूं कि 2013 में जब नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ा तो शरद यादव इसके पक्ष में नहीं थे. तब शरद यादव एनडीए के संयोजक हुआ करते थे. इसके बाद 2017 में जब नीतीश कुमार ने भाजपा से हाथ मिलाया तब भी शरद यादव को यह पसंद नहीं आया. उनकी नाराजगी इतनी बढ़ी कि उन्होंने जेडीयू से नाता ही तोड़ लिया.
एलजेपी से जेडीयू में आए साबिर अली और डा. एजाज अली राज्यसभा से हटने के कुछ दिनों बाद तक नीतीश कुमार के साथ रहे. बाद में वे बीजेपी में शामिल हो गए और अब भी उसी दल में हैं. महेंद्र साहनी जेडीयू से राज्यसभा सदस्य थे, जिनके निधन के बाद अनिल साहनी को राज्यसभा भेजा गया. विवादों में घिरने के चलते वे जेडीयू से अलग हो गए थे और अब वे राजद में हैं.